“बुधिओं का टला”-इस राजस्थानी नाम का मोटा-मोटा अर्थ निकला जाये तो ये वोह जगह होगी जहाँ के अधिकांश निवासी बूढ़े हो. लेकिन इस नाम वाला, बाड़मेर ज़िले का, एक गावं युवाओं के लिए एक पहेली बन चुक्का है. हाल ही में गावं के ८८ वर्षीया बिरमा राम कि तीसरी पत्नी ने जुड़वाँ पुत्रो को जन्म दिया और अपनी ‘सक्रियता’ के लिए विख्यात इस “चिर युवा” कि उपलब्धियों में नवीनतम अध्याय जुड़ गया.
भारत-पाकिस्तान सीमा से जुडे थार रेगिस्तान में बिखरे कच्चे मकानों वाले लगभग गुमनाम से इस गावं का नाम खबरों मे लाने वाले बिरमा राम श्रीलाल शुक्ल के प्रसिद्ध हिंदी उपन्यास “राग दरबारी” के वेध्या जी के उस सिद्वांत को जीते हुवे प्रतीत होते हैं कि, “जीवन में सबसे बड़ी बात है वीर्य कि रक्षा. इसे बचा लिया तो समझो सब-कुछ बच गया.”
बिरमा राम के दावे को मने तो ये घटना और भी अविश्वसनीय लगती है. “दरअसल मेरी उमर ९० साल है. सरकारी रेकॉर्ड में ये गलती से दो साल कम लिखी हुई है. जब में ७४ साल का था तो मेरे पहली संतान- एक बेटी हुई. इसके बाद अब मेरे जुड़वाँ बेटे हुवे. एक कि जन्म के कुछ घंटों बाद ही मौत हो गयी. दूसरा एक दम स्वस्थ है. अब आगे भी में कोई बंदिश नही चाहता. भगवन चाहेगा तो और बचा हो जाएगा,” बिरमा राम केमरा के सामने पोज़े देने से पहले कंघी निकाल कर अपनी मूंछेंसवारते हुवे बताते हैं.
भारत-पाकिस्तान सीमा से जुडे थार रेगिस्तान में बिखरे कच्चे मकानों वाले लगभग गुमनाम से इस गावं का नाम खबरों मे लाने वाले बिरमा राम श्रीलाल शुक्ल के प्रसिद्ध हिंदी उपन्यास “राग दरबारी” के वेध्या जी के उस सिद्वांत को जीते हुवे प्रतीत होते हैं कि, “जीवन में सबसे बड़ी बात है वीर्य कि रक्षा. इसे बचा लिया तो समझो सब-कुछ बच गया.”
बिरमा राम के दावे को मने तो ये घटना और भी अविश्वसनीय लगती है. “दरअसल मेरी उमर ९० साल है. सरकारी रेकॉर्ड में ये गलती से दो साल कम लिखी हुई है. जब में ७४ साल का था तो मेरे पहली संतान- एक बेटी हुई. इसके बाद अब मेरे जुड़वाँ बेटे हुवे. एक कि जन्म के कुछ घंटों बाद ही मौत हो गयी. दूसरा एक दम स्वस्थ है. अब आगे भी में कोई बंदिश नही चाहता. भगवन चाहेगा तो और बचा हो जाएगा,” बिरमा राम केमरा के सामने पोज़े देने से पहले कंघी निकाल कर अपनी मूंछेंसवारते हुवे बताते हैं.
3 टिप्पणियां:
अच्छी जानकारी देता एक अच्छा लेख है।बधाई।
उस बाँके जवाण री फोटू भी लगा देते... :)
:)
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