गुरुवार, 24 मई 2007

बच्चे बने बैरक की रौनक


बाड़मेर जिले में भारत-पाकिस्तान सीमा से सटे रामसर कस्बे की पहचान मांगनियार समुदाय के उन गायकों के कारन विश्व-स्तरीय है जिनके लिए यह अतिशयोक्ति सत्य प्रतीत होती है की मांगनियार बच्चे जन्म से ही अच्छे गायक होते हैं और उनका पहला रुदन भी सुरीले गायन की तेरह होता है. यहाँ एक पुलिस अधिकारी की अनूठी पहल ने राम्सर पुलिस थाने को भी ‘सुरीला’ बाना दिया है. गत कई महिनो से यहाँ हथकड़ी की गूँज और बेंत की फटकर की जगह ‘अनार’ – ‘आम’ का सुरीला गान गूँज रह है. ईस पुलिस थाने का बैरक एक क्लास-रूम की शक्ल अख्तियार कर चुका है और पुलिस वालों ने मास्टर जी की भूमिका भी निभानी शुरू कर दी है.

पहल के सूत्रधार और रामसर के पूर्व- थानाधिकारी सुरेन्द्र कुमार जब गर्मिओं के बावजूद ९० बच्चों की उपस्थिति देखते हैं तो उनकी ख़ुशी छुपाये नही छुपाती. वे बताते हैं, “जो लोग पहले थाने के दरवाजे तक आने में भी घबराते थे उन्हें अब उनके बच्चे हाथों में हाथ डाले हर सुबह याहा तैयार मिलते है. ये एक सुखद एहसास है.”

जब उन्होने इस थाने का चार्ज संभाला तो छोटे से कस्बे का दौरा करते हुवे एक बात नज़र आयी. कुमार के शब्दों में, “मैंने यह देखा की गाँव में बहुत से बच्चे स्कूल जाने के बजाय इधर उधर भटक रहे हैं. फिर यह बात भी देखने में आयी की कई लड़के बीडी-गुटखे का सेवन करते थे वहीँ कुछ लडकियां ज़र्दे की आदि पायी गयीं.”

दरअसल मांगनियार समुदाय के सुरीले सफ़र का यह एक दुखद पहलू है. संगीत महोत्सवों के बार-बार फेरों ने इन परिवार के युवा गायकों के पासपोर्ट भले ही भर दिए हो पर आर्थिक तंगी के चलते बैंक के खाते अक्सर खाली ही रहते है. सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से पिछड़े इस इलाक़े में जागरुकता इतनी कभी नही रह की सरकारी नारों से प्रभावित माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजे.

कुमार के अनुसार, “जब कुछ परिवारों के साथ बात-चीत में बच्चों की पढ़ाई का मुद्दा उठाया तो यही जवाब मिल की आख़िर स्कूल जाने से क्या हासिल होगा?” दूसरी तरफ, रामसर थाना क्षेत्र अपराधिक गतिविधिओं की दृष्टि से कुछ खास हलचल भरा नही मिल. सं २००५ में यहाँ कुल ९१ मामले दर्ज हुवे जो कोई बड़ी संख्या नही है. कुमार ने तय किया की ‘सोशल पुलिसिंग’ के किताबी सबक को कुछ नए तरीके से आजमाया जाये. थाने का बैरक जो अक्सर खाली ही रहता था, उसकी साफ-सफ़ाई कर दीवारों पर पोस्टर सजाये गए. बच्चों की खातिरदारी के लिए टॉफी और फलों की व्यवस्था की गयी. बच्चो और पुलिस के बीच यह मधुर संबंध वैलेंटाइन के दिन शुरू हुआ जब बच्चों को थाने में आने के लिए आमंत्रित किया गया.

शुरूआती दौर में बच्चों ने कोई खास उत्साह नही दिखाया. अच्छे खासे प्रयासों के बावजूद पहले दिन सिर्फ १२ बच्चे ही जुट पाये और उनमे एक भी लडकी नही थी. कुमार के अनुसार, “नशा करने वाले कई बच्चे पिटायी के दर से नही आते थे और सच बतायें तो उन दिनों तो हमारे वर्दी-धारी शिक्षकों नें भी पुलिसिया अंदाज़ में बीडी-गुत्खो की ‘बरामदगी’ कई बच्चो की जेबों से कर ली थी.”

कुछ ही दिनों मे थाने में होने वाली ‘खातिरदारी’ के चर्चे सभी बच्चो में पहुंच गए और ये संख्या इतनी तेजी से बढने लगी की अब तो दूसरी स्कूलों के कयी बच्चे ‘थाना विद्यालय’ मे आ रहे है. हालांकि प्राथमिकता उन्ही बच्चो को मिलती जो किसी विद्यालय मे नही जा रहे हो.

थाना विद्यालय में बच्चों को खेल-खेल में रोजमर्रा की चीजों के बारे मे बताते हुवे भाषा, गणित और विज्ञान की मूलभूत बाते सिखायी जाती है. नाश्ते में जब फल दिया जाते है तो उन्हें भी बारह्खादी के अक्षरों से जोड़ कर ‘खिलाया’ और ‘सिखाया’ जता है. “पहला ही दिन भावुक कर देने वाला रह जब ‘आ’ से ‘अनार’ सिखाने के बाद यह फल खाने को दिया गया तो सभी बच्चों नें खाने में हिचकिचाहट दिखायी क्योकि उन सभी ने यह फल पहली बार देखा था.

थाने के सिपहिओं में सभी ने इस नयी भूमिका को सहज ही अपना लिया और वे इसकी व्यवस्थों के लिए धन का सहयोग भी अपनी जेब से करने लगे. ऐसा नही है की सब कुछ सकारात्मक ही रह. विभाग के कुछ साथियों ने कुमार को समझाया की बिना मतलब के ‘पंगे’ लेने से बेहतर है की वे इस ‘फुर्सत’ भरी पोस्टिंग का अनंद उठाये. सकारात्मक पहलु ये की वरिष्ठ अधिकारी उनकी इस पहल में साथ रहे।


परंतु इससे भी कही संतुष्टि देने वाले पल तो पहले ही हासिल हो चुके है. सुरेन्द्र कुमार वो दिन याद करते है जब थाने के “अपना विद्यालय” मे पढने वाले एक विद्यार्थी ने पारिवारिक मामले को सुलझाने के लिए पहल की. “वो बच्चा अपने पिता को खीच कर थाने ले आया और हमारे सामने आते ही उनसे बोला की थानेदार जी मेरे दोस्त हैं, आप इनके सामने सम्झोता कर लो. उस दिन लगा की विद्यालय शुरू करने का उद्देश्य सफल रह. दरअसल हमारे विद्यार्थी हमारे नन्हे दूत बन चुके हैं.” …उम्मीद की जानी चाहिऐ की पुलिस-पब्लिक संबंधो की ये दास्ताँ कयी सुखद पडाव तय करेगी.

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