सोमवार, 21 मई 2007

बिरमा राम जी जल्द आपके रूबरू


लगता है कि मित्रों को बाड़मेर के श्री बिरमा राम कि कथा पसंद आ रही है। आपकी जिज्ञासा शांत करने के लिए उनसे जुडी कुछ मजेदार बाटी और फोटो पेश किये जायेंगे।


वैसे संतानों के मामले में बिरमा राम को खासा इंतज़ार करना पड़ा. उनकी पहली शादी मालू देवी से हुई. कई सालों तक संतान नही होने पर मालू देवी ने अपनी चचेरी बहिन जमना देवी को अपनी सौतन स्वीकार किया और उससे बिरमा जी की दूसरी शादी हुई. जमना देवी कुछ ही सालों मे चल बसी और संतान की आस अधूरी ही रही. फिर आज से लगभग २३ साल पहले बीस वर्षीया गमू देवी उनकी तीसरी पत्नी बन घर में आयी और अब लडकी कि पैदाइश के१६ साल बाद पुत्र रत्न के जन्म पर घर में ख़ुशी का माहौल है. पहली पत्नी मालू देवी अब ८२ वर्ष की हैं और इन दिनों वे अपने से आधी उमर कि सौतन के साथ नए मेहमान कि कुशियन बाँट रही हैं. नन्हे बच्चे का नाम भोमा रखा गया है. उसे बूढी आंखो से निहारती हुवे मालू देवी कहती हैं, “घर में भैयु आयो है।”


आम तौर पर जिस आयु में भजन-कीर्तन और माला फेरने का काम ही मुख्य माना जाता है, उस उमर में भी बिरमा राम कि दिनचर्या नव-विवाहित युवक जैसी है. अपनी यौन सक्रियता का वर्णन करते हुवे वे कहते हैं, “माला जपने का काम तो वो करते हैं जिनके अंग काम करना बंद कर चुके हो. में तो अब भी रात को खात पर झूठ ही आंखें मूँद कर घर के बच्चों के सोने का इंतज़ार सिर्फ इसलिये करता हूँ ताकि उसके बाद अपनी पत्नी का साथ प सकूं.” इस सपाट बयानी के चलते ही गाँव के कुछ युवा बिरमा को ‘बुजुर्ग आशिक’ का उपनाम दे चुके हैं. गाँव में टेलीफोन बूथ संचालित करने वाले हर्खा राम बताते हैं कि १९ जुलाई कि रात बेटा होने कि ख़ुशी में बिरमा ने गाँव वालो को अच्छी-खासी दावत दी थी. वे बताते हैं, “गाँव के युवा उनसे टिप्स लेना चाहते हैं तो वे उन्हें सीख देते हैं कि नशा-पत्ता मत करो, मेहनत करो और जम कर ख़ुराक लो।”


ग्रामीण जीवन शैली के साथ अपनी खेती-बाड़ी संभाल रहे बिरमा राम के लिए रोजाना २०-२५ किलोमीटर पैदल चलना बड़ी साधारण बात है. चेहरे पर झुर्रियां ज़रूर हैं पर रॉब-दाब माँ कोई कमी नही आयी है. आस-पास के गाँव में आपसी मामलो को सुलझाने के लिए पंचायत बुलायी जाती है तो उन्हें ज़रूर याद किया जता है. ग्रामीण बताते हैं कि बिरमा चौह्तन पुलिस थाने को भी यदा-कादा अपनी सेवायें “पागी” के रुप में देता है. “पागी” उन्हें कहते हैं जो पद-चिन्हों को पहचान कर घटना का सुराग देने में माहिर होते हैं।


छाया- साभार अनिल छंगानी

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