बात herri पॉटर शृङ्खला के प्रसंग जितनी रोमांचक नही, जहाँ तिलस्मी झाड़ू के सवार हवाई कलाबजिया दिखाते हैं… ना ही ये उन लोक-कथाओं जितनी rahasya वाली है जहाँ एक जादूगर को सबक सिखाने के लिए झाड़ू के तिनके काम आते हैं. पर राजस्थान कि धरती से सामने आ रही कुछ परम्पराएं कम रोचक नही है. पेश है एक झलक: सुरत्गढ़ के गाव में नयी झाड़ू को “कुंवारी” मानते हुवे उसे काम मे नही लेते. झाड़ू का अगला हिस्सा जला कर उसकी “शादी” कर दी जाती हेई और लीजिये झाड़ू सफ़ाई करने को तैयार है. जोधपुर के पुराने शहर में अगर बरसात हो रही हो और आप छत पर झाड़ू निकलने लगें तो समझ लीजिये कि आपने एक सामाजिक अपराध करने का दुस्साहस कर डाला है.
झाड़ू के जितने तिनके, राजस्थान में उनसे जुडी हैं उतनी ही मान्यताएं. Rupayaan संस्थान के संस्थापक और जाने मने लोक-कलाविद कोमल कोठारी ने इन्हें जाना तो लगा मनो उन्हें सामाजिक इतिहास में झाकने के लिए एक झरोखा मिल गया हो! उन्होने राजस्थान कि लोक कथाओं और संगीत के मोती सहेजते-बुनते हुवे एक सपना देखा और अब wo सपना जोधपुर में एक अनूठे झाड़ू sangrahalaya के रुप में साकार होने जा रह है।
सोमवार, 21 मई 2007
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2 टिप्पणियां:
अच्छी जानकारी भरा आलेख,धन्यवाद.
म्युजियम देखने की ईच्छा है; कृपया टिकट का रेट बताएं।
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